पोस्टपार्टम इनसोमनिया की समस्या महिलाओं में अक्सर प्रेग्नेंसी के आठवें महीने से शुरू होती है तो डिलीवरी के करीब 2 महीने तक रहती है। बेहतर होता है कि समय रहते इसके लक्षणों को समझ कर डॉक्टर से संपर्क किया जाए।
जब एक महिला शिशु को जन्म देती है तो उसके शरीर में शारीरिक और मानसिक हर तरह से बदलाव आते हैं, जिसके चलते वह कई बार स्वास्थ्य समस्याओं की चपेट में भी आनी शुरू हो जाती हैं। इन्हीं में से एक है पोस्टपार्टम इनसोमनिया। यह महिलाओं में हार्मोनल परिवर्तन से संबंधित एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या है जो शिशु के जन्म के कुछ समय पहले और बाद में शुरू होती है। इसमें महिलाओं को चिंता, नींद की कमी, नींद का टूटना और डिप्रेशन जैसे लक्षण देखने को मिलते हैं।
शोधों के मुताबिक प्रसवोत्तर करीब 15 से 20 प्रतिशत महिलाएं अवसाद और नींद की समस्या का शिकार होती हैं। अकरहुस बर्थ कोहोर्ट की स्टडी के मुताबिक करीब 60 प्रतिशत महिलाओं में पोस्टपार्टम इनसोमनिया की समस्या प्रेग्नेंसी के 32वें हफ्ते से लेकर डिलीवरी के आठ हफ्ते बाद तक रहती है। डॉक्टर्स कहते हैं कि गांव में रहने वाली महिलाओं की तुलना में शहरों में रहने वाली महिलाएं इसकी जल्दी शिकार होती हैं। इसके पीछे वे कहीं न कहीं शहरी माहौल का अकेलापन और चिड़चिड़ापन जिम्मेदार मानते हैं।
पोस्टपार्टम इनसोमनिया के लक्षण
पोस्टपार्टम इनसोमनिया के लक्षण काफी हद तक पोस्टपार्टम डिप्रेशन से मिलते हैं। आइए जानते हैं क्या हैं ये—
- मूड स्विंग
- अत्यधिक चिड़चिड़ापन
- हद से ज्यादा उदासी
- अत्यधिक चिंता
- ज्यादा पसीना आना
- छोटी छोटी बात पर गुस्सा आना
- स्ट्रेस और सिर में रहना, आदि।
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पोस्टपार्टम इनसोमनिया से बचने के उपाय
- वैसे तो हर महिला को प्रसव के बाद कैफीनयुक्त उत्पादों के सेवन से बचना चाहिए। लेकिन अगर आपको अपने अंदर पोस्टपार्टम इनसोमनिया के लक्षण दिखते हैं तो इसने खासा परहेज करें। ये आपकी नींद में बाधा डाल सकते हैं।
- अपना सोने का एक समय तय करें। फिर चाहे उस समय आपको कितना भी जरूर काम हो, उसे नजरअंदाज कर आपको अपने सोने के समय पर ध्यान लगाना है। फिर भी नींद में कमी आ रही है तो सोने से पहले गुनगुने पानी से स्नान करें, कोई मनपसंद किताब पढ़ें या संगीत सुनें। या आप कोई ऐसा काम कर सकते हैं जिससे आपको खुशी मिले।
- आप नींद लाने के लिए कोई एक्टिविटी भी कर सकते हैं। जैसे कि लगभग 5 मिनट तक गहरी सांस लेकर बाहर-अंदर करें। इससे आपका शरीर थकेगा और आपको अच्छी नींद आएगी।
- कई बार बच्चे का रोना भी नींद में खलल का कारण बनता है। इसलिए रात में बच्चे को संभालने की जिम्मेदारी अपने पति पर या घर के किसी ऐसे सदस्य पर छोड़ दें जो बच्चे को संभाल पाए। इससे आपकी नींद नहीं टूटेगी और न ही आप अवसाद के शिकार बनेंगे।